रहमान का “ज़रिया” एक दरिया है, बौद्ध श्लोक, हिंदी कोरस और जॉर्डिनियन धुनों का। जीवन के अंतिम सत्य को ढूंढ़ते “नान येन” को रहमान ने अपनी आत्मा से गाया है। रहमान की बहनों की जोड़ी का शास्त्रीय अंदाज़, धीमी गति के “येंनीले महा ओलियो” में ताल गाने को नई ऊँचाइयों पर ले जाता है। कर्नाटक और हिंदुस्तानी गायन शैली मिश्रित, उस्ताद ग़ुलाम मुस्तफ़ा ख़ान और उनके परिवार द्वारा गाया “आओ बलमा” में प्रसन्ना का गिटार प्रभावी है। दादा-पोते (उस्ताद ग़ुलाम मुस्तफ़ा ख़ान और फ़ैज़ मुस्तफ़ा) का “सोज़ ओ सलाम” पारम्परिक संगीत और आधुनिक तकनीक के मिश्रण का नायाब नमूना है। बाँग्ला में “जगाओ” “भीशोन मीठा” है!
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