इस ऐल्बम में तनिष्क बागची ने “दिलबर” में ऊद के इस्तेमाल से अरबी संगीत का तड़का लगाया है, जिसमें नेहा कक्कड़ की खनक़ती आवाज़ पार्टियों के लिए बिलकुल तैय्यार है। जहाँ “पानियों सा” में आतिफ़ असलम की प्रभावी आवाज़ रोमांस को बेहद ख़ूबसूरत रूप से व्यक्त करती है, वहीँ “तेरे जैसा” में तुलसी कुमार की मधुर आवाज़ शहनाई के साथ सरलता से घुल जाती है। “ताजदार-ए-हरम” का इलेक्ट्रॉनिक संगीत उसे एक तीव्र फ़ील देता है।
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